जानिए गोपालगंज की विख्यात थावे वाली माता की अद्भुत कहानी | Thawe Wali Mata Ki Kahani

मां थावेवाली की मंदिर, थावे दुर्गा मंदिर बिहार राज्य के गोपालगंज जिले से 5 से 6 किमी की दूरी पर स्थित है यहां पर बिहार, उत्तर प्रदेश, नेपाल और भारत के कई इलाकों से भक्त श्रद्धालु माता थावेवली की दर्शन करने आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अगर आप मां थावेवाली की दर्शन करते हैं तो मां के प्यारे भक्त रहसू भगत का भी दर्शन करना चाहिए जिनका मंदिर मां की मंदिर से कुछ ही मीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसा करने से मां बहुत प्रसन्न होती है और आपके सारे मनोरथ सफल होते हैं। तो चलिए अब मां थावेवाली, भक्त रहसू और इससे जुड़ी सभी तथ्यों के बारे में जानते हैं बोलिए जय मां थावेवाली।

Mata thawewali

थावे वाली माता की अद्भुत कहानी | Thawe Wali Mata Ki Kahani
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ऐसा कहा जाता है कि आज से बहुत साल पहले गोपालगंज का यह क्षेत्र उस समय के राजा, राजा मनन सिंह के क्षेत्राधिकार में आता था और इसी राजा के राज्य में मां थावेवाली की परम भक्त रहसू रहते थे और खेतीबाड़ी करके अपनी जीविका चलाते थे। लेकिन एकबार अचानक से राज्य में भीषण अकाल पड़ जाता है और राज्य में भुखमरी की नौबत आ जाती है लेकिन भक्त रहसू मां की आशीर्वाद से घास की दऊरी (दऊरी मतलब घास को चहलकर घास से अनाज को अलग करने की प्रक्रिया) करके अनाज निकालते है। इस प्रक्रिया को करने के लिए रहसू मां की आशीर्वाद से हिंसक बाघों और जहरीले सापों की मदद लेते हैं और घास की दऊरी करके अनाज निकालते है और राज्य में जरूरत मंदो को बांट देते है। इसकी सूचना राजा मनन सिंह को मिल जाती है और राजा मनन सिंह इसकी जांच करवाते है तो ये बाते बिलकुल सही निकलती हैं इसलिए राजा मनन सिंह भक्त रहसू को अपने दरबार मे बुलवाते है और इसके बारे में पूछते है तो रहसू माता की शक्ति के बारे में बताते है और कहते हैं कि ये सभी चमत्कार माता की कृपा से ही हो रहा है।

इस चमत्कार को देखकर राजा मनन सिंह रहसू से माता की दर्शन करवाने की इच्छा जाहिर करते है लेकिन भक्त रहसू मना कर देते है और कहते है कि ऐसा करने से आपका और आपके राज्य का विनाश हो जायेगा लेकिन राजा नहीं मानते है और अंत में भक्त रहसू को दबाव में आकर माता को बुलाना पड़ता है। जैसे ही भक्त रहसू माता का आवाहन करते है तो माता क्रोधित होकर कामख्या से चलकर पटना के पाटन फिर छपरा के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे में पहुंचती है। मां के पहुंचते ही यहां आंधी, तूफान और आकाशीय बिजली गिरने जैसी घटना होती है और माता भक्त रहसू के सिर को फाड़कर अपना कंगन और हाथ का हिस्सा दिखाती है इससे भक्त रहसू को मुक्ति मिल जाती है और वही राजा और राजा के समुचित राज्य का विनाश हो जाता है।

भक्त रहसू का जन्म कैसे हुआ?
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भक्त रहसू का जन्म एक दलित परिवार मे जन्मी युवती के हाथ से हुआ था जिसका नाम मुनिया था।

मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि मुनिया मां भवानी की बहुत बड़ी भक्त थी और उसका जन्म एक दलित परिवार में हुआ था लेकिन इसके बावजूद वह चोरी चुपके मंदिर जाकर मां भवानी की पूजा करती थी लेकिन एक बार पूजा करते समय गांव की महिलाओं ने मुनिया को देख लिया और भला बुरा कहा और मंदिर की परिसर से भागा दिया। इससे मुनिया रोते हुए घर चली गई और बैठकर रोने लगी। इसी दौरान मां भवानी ने मुनिया को दर्शन दिया और उससे एक पुत्र प्रदान करने की आग्रह की ये सब सुनकर मुनिया अचंभित हो गई और मां भवानी से बोली कि मैं बिन व्याही मां कैसे बन सकती हूं तो मां ने कहा इसकी चिंता मुझपर छोड़ो और मां ने बताया कि यह पुत्र तुम्हारी उंगली के ऊपर बने झलके में से जन्म लेगा और बड़ा होकर यह रहसू भगत के नाम से पूरे भारत वर्ष में जाना जाएगा और माता के कथानानुसार आगे चलकर यही हुआ।

भक्त रहसू की माता का क्या नाम था?
भक्त रहसू की माता का नाम मुनिया था।

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