जानिए कौन है प्रेमानंद जी महाराज और कैसे बने सन्यासी | प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय

राधे राधे मित्रों आपके सत्कर्म और भक्ति ही आपको मोक्ष मार्ग की ओर ले जायेंगे। ग्रंथों की माने तो कलयुग में पापाचरण बढ़ जायेगा और एकमात्र भक्ति को ही कलयुग में श्रेष्ठ बताया गया है। इस लेख में हमलोग वृंदावन के एक ऐसे संत के बारे में जानेंगे जिनकी दोनो किडनी फेल है फिर भी जिंदा है और जिन्हे जाने माने भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली भी सुनते है और बाबा के सत्संग में भी गए है जी हां दोस्तों हम बात कर रहे है प्रेमानंद जी महाराज की जिनके सत्संग YouTube पर सुने और शेयर किए जाते हैं। तो चलिए जानते है कि प्रेमानंद जी महाराज कौन है, शुरुवाती जीवन कैसा था और कैसे इतने प्रसिद्ध हुए?

Premanand Ji Maharaj Biography in Hindi

प्रेमानंद जी महाराज का जन्म और शुरुआती जीवन | Premanand Ji Maharaj Biography in Hindi
^
प्रेमानंद जी महाराज का जन्म एक सभ्य ब्राह्मण परिवार में कानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री शंभू पाण्‍डेय और माता का नाम रमा देवी है और उनके बचपन का नाम अनिरुद्ध पांडे है। प्रेमानंद जी महाराज के दादा एक सन्यासी थे और ब्राह्मण कुल से होने के कारण इनके घर का वातावरण भक्तिमय रहा करता था और इनके घर प्राय संत महात्मा आते जाते रहते थे। बचपन में ये अन्य बच्चों की तरह नहीं थे घर का वातावरण भक्तिमय होने के कारण इनका ज्यादा ध्यान भक्ति की तरफ रहता था। प्रेमानंद जी महाराज ने बचपन से ही मन्दिर जाना कीर्तन करना शुरू कर दिया था।

भागवत प्राप्ति के लिए गृह त्याग
^
जब प्रेमानंद जी महाराज 13 वर्ष की हुए तो उनके मन में भागवत प्राप्ति से संबंधित विचार उठे और इस विचार पर अमल करने के बाद उन्होंने भागवत प्राप्ति के लिए 13 वर्ष की अवस्था में घर छोड़ दिया और वाराणसी की घाटों पर एकांत जीवन व्यतीत करने लगे। यहां वे प्रतिदिन गंगा जी में स्नान करके तुलसीघाट के एक विशाल पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान महादेव का ध्यान करते थे और एकांत जीवन व्यतीत करते थे और भोजन के लिए भिखारियों की कतार में लगकर भोजन मिलने की प्रतीक्षा करते थे भोजन किसी ने दे दिया तो ठिक और नहीं तो ऐसे ही गंगा जल पीकर रहते थे। कभी कभी भोजन न मिलने के कारण कई कई दिन ऐसे ही भूखे रह जाते थे। यही उनकी यहां की कठिन दिनचर्या थी।

प्रेमानंद जी महाराज का वाराणसी से वृदावन में आगमन
^
एक दिन प्रतिदिन की तरह महाराज जी तुलसीघाट पर अपनी साधना में बैठे हुए थे तभी उनके पास एक बाबा आए और बोले भईया जी श्री हनुमान प्रसाद जी का विश्वविद्यालय जो काशी में स्थित है वहां पर श्री रामशर्मा आचार्य जी द्वारा एक धार्मिक आयोजन का प्रबंधन किया गया है जिसमे दिन में श्री चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला होगा चलो हमदोनो वहां दर्शन करने चलते हैं। महराज जी ने कभी भी रासलीला नहीं देखी थी। महराज जी का स्वभाव था हमेशा एकांत में रहकर प्रभु महादेव की साधना करना इसलिए उन्होंने उन अपरिचित संत के साथ जाने से इंकार कर दिया तो फिर संत बाबा ने एक बार फिर से साथ चलने का आग्रह किया तो फिर से प्रेमानंद जी महाराज ने मना कर दिया लेकिन संत बाबा कहां मानने वाले थे उन्होंने ने कहा अरे बाबा मेरे साथ एकबार चलिए और फिर से मैं दुबारा नहीं कहूंगा। इस बात पर महराज जी ने थोड़ा अमल किया और सोचा की शायद महादेव जी की कोई इच्छा होगी और संत बाबा के साथ चलने का मन बना लिया और लीला देखने चले गए। दिन का समय था और चैतन्य लीला का मंचन हो रहा था और महराज जी ने चैतन्य लीला देखी। महराज जी को लीला बहुत पसंद आई इसलिए उन्होंने ने रात्रि के समय रासलीला देखने रासलीला शुरू होने के कुछ देर पहले ही पहुंच गए। श्री चैतन्य लीला और रासलीला से महराज जी इतने प्रभावित हुए की एक महीने तक लीला देखने गए और इस खुशी में उन्हे पता ही नही चला की एक महीना कैसे बीत गए जैसे ही लीला समाप्त हुई, तो महराज जी दुखी हो गए और सोचने लगे अब मेरा क्या होगा तभी संचालय महोदय बोले बाबा जी आप एक बार वृंदावन आ जाइए बिहारी जी आपको छोड़ेंगे नहीं। इस वाक्य ने महराज जी की जिंदगी ही बदल दी।

और उनके मन में तभी से वृंदावन कैसे जाया जाए इसके विचार चलने लगे। लेकिन महराज जी फिर अपने पुराने नियमानुसार गंगा जी में स्नान करते और प्रभु महादेव की साधना करते लेकिन उनके मन में वृंदावन जाना है वृंदावन जाना है का विचार चलते रहता।

एक दिन जब महराज जी तुलसीघाट पर प्रातकाल साधना कर रहे थे तो उसी समय पास के संकट मोचन हनुमान मन्दिर के बाबा युगल किशोर जी प्रसाद लेकर महाराज जी के पास आए और बोले लो बाबा प्रसाद लेलो लेकिन महराज जी ठहरे एकांतवासी और बोले मेरे को ही प्रसाद क्यों देना है किसी और को दे दीजिए तो बाबा जी बोले अंतर्मन से आप ही को प्रसाद देने की प्रेणना आई है यह सुनकर महराज जी ने प्रसाद ग्रहण कर लिया और चल पड़े। तभी युगल किशोर जी बाबा ने बोला महराज जी आप हमारी कुटिया चलिए लेकिन महराज जी ने जाने से इंकार कर दिया और बोले मैं खुले आकाश के नीचे घाटों पर रहता हूं और भिक्षा में जो मिल जाता है वही ग्रहण कर लेता हूं और प्रभु का ध्यान करता हूं मैं किसी के कुटिया या घर नहीं जाता। लेकिन बाबा जी के एक बार फिर से आग्रह करने पर स्नेहवश महराज जी ने बाबा की कुटिया पर गए।

वहां बाबा जी ने अपने हाथों से दाल और रोटी बनाकर महराज जी को खिलाई इससे महराज जी की पेट की भूख तो मिट गई लेकिन उनके मन में वृंदावन जाना है का विचार चलता रहा। इसलिए महराज जी ने युगल किशोर जी बाबा से पूछ ही लिया की क्या आप मुझे वृंदावन पहुंचा सकते हैं यह सुनकर मानो की युगल किशोर बाबा जी प्रतिक्षा ही कर रहे थे की कब ये मन में चल रहे वृंदावन जाना है की बात पूछेंगे और बोले क्यों नहीं जरूर पहुंचा देंगे आप जब कहे महराज जी तो तैयार ही बैठे थे और बोले जब तक आप जाने की व्यवस्था कर दें। तो युगल किशोर बाबा जी बोले कल के लिए आप तैयार हो जाइए। यह वाक्य सुनकर महराज प्रेमानंद जी के खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा और युगल किशोर बाबा जी ने अपने वचनानुसार महराज जी को मथुरा जाने वाली ट्रेन में बैठा दिया।

इस तरह से वे वृंदावन पहुंच गए और तब से लेकर आज तक प्रेमानंद जी महाराज संपूर्ण वृदावन के कई सिद्ध स्थानों पर रहते हुए अपने लाडली श्री राधा जी की सेवा कर रहे हैं। महराज जी वृदावन में संत कौलोनी, अचल विहार, लाडली कुंज और रमण रेती जैसे कई सिद्ध स्थानों पर निवास कर चुके है।

प्रेमानंद जी महाराज का आश्रम पता
^
प्रेमानंद जी महाराज संपूर्ण वृदावन के कई स्थानों पर रह चुके है और अभी वर्तमान में उनके आश्रम का पता नीचे दिया गया है।

Shri Hit Radha Keli Kunj , Near Bhaktivedanta Hospital, Parikrama Marg, Varaha Ghat, Vrindavan 281121 (Uttar Pradesh)

Premanand Ji Maharaj Official Social IDs
^
प्रेमानंद जी महाराज के जो भी सत्संग होते हैं उनको record करके महराज जी के official social media handle पर भी शेयर किया जाता है जिसे online आप अपने घर बैठें सुन या देख सकते हैं।


प्रेमानंद जी महाराज (People also ask Google)

प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम क्या है?
प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है जो बचपन में रखा गया था।

प्रेमानंद जी महाराज के गुरु कौन है?
प्रेमानंद जी महाराज के गुरु श्रीहित मोहित मराल जी है।

प्रेमानंद जी महाराज कितने बजे उठते हैं?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, प्रेमानंद जी महाराज सुबह के दो बजे उठकर परिक्रमा करते हैं और उसके बाद वे सुबह करीब साढे चार बजे से साढे पांच बजे तक भक्‍तों के साथ सत्‍संग करते हैं।

Post a Comment

0 Comments